राष्ट्रीय फ़ाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत आयोजित हुआ अभिमुखीकरण कार्यक्रम
हर पल निगाहें संवाददाता
अमेठी-राष्ट्रीय फ़ाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान और स्वयमसेवी संस्था सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च(सीफॉर) के सहयोग से बृहस्पतिवार को मुसाफिरखाना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र(सीएचसी) पर अभिमुखीकरण कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ), आशा संगिनी और एएनएम मौजूद रहे |
इस मौके पर सीएचसी अधीक्षक डा. आलोक मिश्रा ने फ़ाइलेरिया के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि फाइलेरिया को हाथीपाँव भी कहते हैं जो कि मच्छर के काटने से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया, दुनिया भर में दीर्घकालिक दिव्यांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। आमतौर पर बचपन में होने वाला यह संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इससे बचाव न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे; हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा (अंगों की सूजन) व काइलूरिया (दूधिया सफेद पेशाब) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक बोझ सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
मच्छर जब किसी फाइलेरिया ग्रसित व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के परजीवी जिन्हें हम माइक्रोफाइलेरिया कहते है वह मच्छर के रक्त में पहुँच जाता है और यही मच्छर जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के परजीवी स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में पहुँच कर उसे संक्रमित कर देते हैं | किसी भी व्यक्ति को संक्रमण के पश्चात् बीमारी होने में पांच से 15 वर्ष लग सकते हैं |
यदि हम इन लक्षणों को पहचान लें और समय से जांच कराकर इलाज करें तो हम इस बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं | फाइलेरिया की जाँच रात के समय होती है | जांच के लिए रक्त की स्लाइड रात में बनायी जाती है क्योंकि इसके परजीवी दिन के समय रक्त में सुप्तावस्था में होते हैं और रात के समय सक्रिय हो जाते हैं |
सर्वजन दवा सेवन यानि मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) के तहत पाँच सालों तथा आईडीए(आइवरमेक्टिन, डाईइथाइलकार्बामजीन और एल्बेंडाजोल) के तहत लगातार तीन सालों तक साल में एक बार दवा का सेवन करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है | इसलिए जब भी आशा और आंगनबाड़ी लोगों को फाइलेरिया बचाव की दवा का सेवन कराने आयें तो जरूर फ़ाइलेरियारोधी दवा का सेवन जरूर करें | यह दवाएं फाइलेरिया के परजीवियों को तो मारती ही हैं |
दो साल से कम आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्तियों को छोड़कर सभी को इन दवाओं का सेवन करना चाहिए |
फ़ाइलेरियारोधी दवा के सेवन के बाद कभी-कभी सिर में दर्द, शरीर में दर्द, बुखार, उल्टी तथा बदन पर चकत्ते एवं खुजली देखने को मिलती है लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है | मरते हुए परजीवियों के प्रतिक्रियास्वरुप यह होता है जो कि आमतौर पर स्वतः ठीक हो जाते हैं |
ब्लॉक फुरसतगंज के तरौना आयुष्मान आरोग्य मंदिर की सी एच ओ एवं रोगी हित धारक मंच (पी एस पी )की सदस्य रंजना ने बताया कि यह बीमारी लाइलाज है | इसका केवल प्रबन्धन किया जा सकता है | नियमित व्यायाम और फ़ाइलेरिया प्रभावित अंगों की देखभाल से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है और एम एम डी पी का प्रदर्शन कर दिखाया कि किस प्रकार फाइलेरिया से प्रभावित अंग की साफ सफाई की जाती हैl इसके बाद इन्होंने बताया की हमारे आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्तर पर रोगी हितधारक मंच का गठन हुआ जिसमें प्रधान,कोटेदार,आशा,संगिनी और फाइलेरिया रोगी किस प्रकार से एक साथ एक मंच पर एकत्रित होकर फाइलेरिया उन्मूलन के लिए योजना तैयार कर काम कर रहे हैं और इस गठन के उद्देश्य को भी बताया l
बीसीपीएम राजीव पाण्डेय ने बताया कि मच्छर गन्दी जगह पर पनपते हैं | इसलिए हमें अपने घर और आस-पास मच्छरजनित परिस्थितियां नहीं उत्पन्न करनी चाहिए| साफ़ सफाई रखें, फुल आस्तीन के कपड़े पहने, चाहिए, मच्छरदानी का उपयोग करें, मच्छररोधी क्रीम लगायें और दरवाज़ों और खिड़कियों में जाली का उपयोग करें ताकि मच्छर घर में न प्रवेश करें | रुके हुए पानी में कैरोसिन
इस अवसर पर 14 सीएचओ, 8 आशा संगिनी, 22 एएनएम.बी पी एम हिना खान,एआरओ अशोक कुमार ब्लॉक हेल्थ वर्कर दुर्गेश कुमार और सीफॉर के प्रतिनिधि मौजूद रहे |